बादल नीचे,
आसमान अब भी ऊपर,
तैरता सफ़ेद रज़ाई पर
मेरा छोटा सा जहाज़ |
पंखियों से अपने काटे रस्ता,
रस्ता नापे दिशाहीन नीले अंबर का,
ऊंचाइयों को बतलाता
अपने कद का मसला
कैसे लोग उसे हमेशा,
हमेशा ही नज़रअंदाज़ करते |
कैसे तौली जाती बाते उसकी
आकारों के तराज़ू में
और मोल कभी सही न लगता
उसके शब्दों का
विवादों के न्यायालय में |
उसका परिणाम परिमान
आवाज़ उपेक्षा
पर फिर भी वो उड़ता रहता
अपनी रूह को समेटे
तेज़ हवाओं से टकराता
अपनी नन्ही पंखियों से
बादलों को छांटता
कपास के गुच्छों में
गोते लगाता
क्योंकि है तो वो
आखिरकार सबसे ऊपर |
पीछा करती
सूरज की किरणे
पर थामे न थमे दामन
मेरे छोटे से जहाज़ का |
पानी के प्यालों से
झाँकता हैरान सूरज
नीचे विचरती ज़िन्दगी ताकती
संकल्प मेरे नन्हे से यार का |
बिखरे न जाने कितने खेत
जैसे फटी चादर के मरम्मत की माँ की हो कोशिश
माचिस की डिबिया
ईंटों की बस्ती
बच्चों के खिलौनों
की सड़कों पर मस्ती |
इन सब पर से गुज़रती
परछाई मेरे हवाई जहाज़ की
जैसे हो कोई बाज़
जिसे लालसा हो अपने शिकार की |
और अतुल गति से वो
छलांग लगाता
और अपने प्रगाढ़ पंखों से
धरती की धुल हटाता |
मेरे छोटे से जहाज़ का
विस्तार भले ही था कम
पर सफर न था छोटा |