मनमानी
कभी रोका ही नहीं ,कभी टोका ही कहाँ ?खुले मैदान में दौड़ लगाने से ,पत्थरों की बिछी चादर पर ना जाने कितने कांटें थे ,सब चुभ जाने थे ,सब छिप जाने थे मेरी चौकस नज़रों से ,आवाज़ बन कर चिल्लाने थे ,आंसू बन कर बह
कभी रोका ही नहीं ,कभी टोका ही कहाँ ?खुले मैदान में दौड़ लगाने से ,पत्थरों की बिछी चादर पर ना जाने कितने कांटें थे ,सब चुभ जाने थे ,सब छिप जाने थे मेरी चौकस नज़रों से ,आवाज़ बन कर चिल्लाने थे ,आंसू बन कर बह