मैं भी कभी कभी लिख लेता हूँ
मैं भी कभी कभी लिख लेता हूँ,जलता हूँ अक्सरउन लोगों सेजो कितनी आसानी से अपनी बात कह देते हैं,जो दिल में होता है उसे तुरंत ही रख देते हैं |कैसे?कैसे ज़िन्दगी इतनी सहल कर रखी है भला?क्यों नहीं कभी भरता तुम्हारी सोच का घड़ा?वह क्या