कांच की मछली
कांच की मछली,कांच में रहती,पानी तो बस ढोंग है,घर है मेरा चार दीवारीरस्ता डामाडोल है | खाना मेरादाना होता,हर सुबह की जंग है,कभी कभी तोकुछ नही मिलतापानी के इस रंग में | सबका व्यंजन,मैं मनोरंजन,भूखे मुझको ताकते, कितनी बड़ी है,कितनी छोटी,अक्सर मुझको आंकते | लोग