दोपहर
दोपहर !तेरे बारे मे कोई न कहे,याद तुझे कोई न करे | तेरे चुपके से आने का इंतज़ार कौन ही करता है ?तू खामखा खड़ा हैचौखट पर,लोटे की ताक मे,तुझे अर्चन देनेकौन ही आएगा ? मुर्झायें डालों परहर अंग सिकुड़ता है,कराहता हर मन,कोसे तुझे ज़ुबाने,बेहिसाब
दोपहर !तेरे बारे मे कोई न कहे,याद तुझे कोई न करे | तेरे चुपके से आने का इंतज़ार कौन ही करता है ?तू खामखा खड़ा हैचौखट पर,लोटे की ताक मे,तुझे अर्चन देनेकौन ही आएगा ? मुर्झायें डालों परहर अंग सिकुड़ता है,कराहता हर मन,कोसे तुझे ज़ुबाने,बेहिसाब
माँ तुम ना हो तो,हर शब्द है चिंघाड़,हर जिद्द है नखरा,हर कदम पर चोट,मरहम दे आँसू,हर बच्चा कंधाऔर जुबां बंदूक | हर गाना है तानाजो चुभता रोज़ाना,हर बात है बतंगड़,हर लफ्ज़ है कराहना,हर काम है पर्वत,हर लक्ष्य है चोटिल | असीम अँधेरा,ढूंढू तुझे हर दिनहै
कभी रोका ही नहीं ,कभी टोका ही कहाँ ?खुले मैदान में दौड़ लगाने से ,पत्थरों की बिछी चादर पर ना जाने कितने कांटें थे ,सब चुभ जाने थे ,सब छिप जाने थे मेरी चौकस नज़रों से ,आवाज़ बन कर चिल्लाने थे ,आंसू बन कर बह
मैं गूंगी पतझड़ कीना जाने किस वन कीठहर गया कोईआंगन में मेरेकोई परिंदा दामन से मेरे बाँध गया मुझे रूह से अपनी झांक गया मेरे तन मन को कह न सकी मैं गूंगी थी मैं की रुक जा परिंदे सुन ले तू मेरी पर नहीं