समोसा
ए समोसे!उधर अकेले क्यों खड़ा है?आज फिर से आलू खा कर तेरा पेट बड़ा है।जरा इधर भी तो आ,वह आलू हमें भी तो चखा!पापी तो बस पेट है, हमने थोड़ी ही कोई पाप किया है,पापी तो तू है, जो सामने आ कर भी अपनी ज़िद
ए समोसे!उधर अकेले क्यों खड़ा है?आज फिर से आलू खा कर तेरा पेट बड़ा है।जरा इधर भी तो आ,वह आलू हमें भी तो चखा!पापी तो बस पेट है, हमने थोड़ी ही कोई पाप किया है,पापी तो तू है, जो सामने आ कर भी अपनी ज़िद
“रुमाली रोटी! आज फिर तेरी याद आयी रे!” मन अचरज में पड़ाकी इतनी पतली हो कर भी तू कैसे भर देती पेट मेरा?रूमाल की हरकतें देख कर है तेरा नाम पड़ा, कई बार तो मैं धोखा खा कर जेब में तुझे ले चल पड़ा। न
घर न जा परिंदे वहाँ ताला है बदला, तेरी चाबी से अब न खुलेगा,वापस कहाँ जाएगा?इतने दिनों तू था एक अजनबी, अब तुझे क्यों कोई गले लगाएगा?जिस युद्ध में था तू डूबा,वहाँ जाने से तुझे था रोका ,तू फिर भी लड़ने था दौड़ाकी तेरा रक्त
जब तुम ठहरे हो एक कगार पर,कि अब टूटे की तब टूटे,जहाँ टूटने के सिवा और कुछ न कभी होता,इंतज़ार के चौखट पर शायद ही मन कभी सोता,तो क्या फ़ायदा हथेलियों का? जब रेत रोके न रुके, जब हर सोच हो बिखरने की, रास्ता हो
नाशपाती नाशपाती,विश्वासघाती नाशपाती,मिठास के आड़ में दे जाती एक विचित्र स्वाद यह नाशपाती। खाने में न मिलेगा कोई साथी, क्योंकि सामने रखी है नाशपाती,उठा उठा कर अकेले खाओ, फल है भाई यह आत्मघाती। जा कर चुपचाप बैठ जाती, चढ़ कर यह मेरे छाती,भुलाने को तो
कर्क तूने खुद बड़ा हो करमुझे इतना सा बना दिया | कितना गरम था यह मिज़ाज तूने नरम ही बना दिया | रातों की गायब नींद को तूने झट्ट से सुला दिया | जल्दी से बड़े होने की दौड़ कोतूने अपना ही बना लिया ?
इस तन्हाई की आदत डाल मुसाफ़िर, आगे तुझे अकेला ही चलना पड़ेगा,सफ़र अभी बहुत लम्बा है मुसाफ़िर, यूँ घुटने टेक देगा तो कैसे चलेगा? लोग तो बस राही थे मुसाफ़िर,पैदा तो तू अकेला ही हुआ था,रस्ते सब के अलग होते हैं मुसाफ़िर,तेरे रस्ते तुझे अकेला
कम से कम चला रे साँसे साँसों को तू संभाल रख,है जरुरत आगे जाकर हौसले को तू बांध रख | क्यों चाहिए इतनी साँसे ?चंद लगेगी जीने को, आगे की नदी तो सूखी पड़ी है पानी भी न मिलेगा पीने को | व्यर्थ लगा मत
कस लो कमर आंसुओं को थाम लो आ गई खबर बंद कर दो दफ्तर कर लिया सब काम हो गयी है शाम लगेगी अब रात की फूँकार | चौखट पर है यम की सवारी बैठ कर बस निकलने की है बारी | बंद होगी अब
लोगों का क्या है,लोग तो भखेड़ों की बस्ती से निकल पड़ते हैं सब सामान बटोरे पर मैं, मैं तो वहीँ रह जाता हूँ महीनो किराया दे वहीँ बस जाता हूँ दुर्घटना स्थल के चक्कर लगाताबार बार दोहराता जो चीज़ें हलक पर रुक गयी थी सब