दोपहर
दोपहर !तेरे बारे मे कोई न कहे,याद तुझे कोई न करे | तेरे चुपके से आने का इंतज़ार कौन ही करता है ?तू खामखा खड़ा हैचौखट पर,लोटे की ताक मे,तुझे अर्चन देनेकौन ही आएगा ? मुर्झायें डालों परहर अंग सिकुड़ता है,कराहता हर मन,कोसे तुझे ज़ुबाने,बेहिसाब
दोपहर !तेरे बारे मे कोई न कहे,याद तुझे कोई न करे | तेरे चुपके से आने का इंतज़ार कौन ही करता है ?तू खामखा खड़ा हैचौखट पर,लोटे की ताक मे,तुझे अर्चन देनेकौन ही आएगा ? मुर्झायें डालों परहर अंग सिकुड़ता है,कराहता हर मन,कोसे तुझे ज़ुबाने,बेहिसाब
Death is coming. It is that certainty up ahead that everyone is aware of. You don’t know which day could be your last. Is it today, tomorrow, maybe a few years down the road? There’s an unsaid eventuality lurking in every story. You could be