ए समोसे!
उधर अकेले क्यों खड़ा है?
आज फिर से आलू खा कर
तेरा पेट बड़ा है।
जरा इधर भी तो आ,
वह आलू हमें भी तो चखा!
पापी तो बस पेट है,
हमने थोड़ी ही कोई पाप किया है,
पापी तो तू है,
जो सामने आ कर भी
अपनी ज़िद पर अड़ा है।
अगर पापी न होता
तो इस नर्क में तुझे
क्यों गरम तेल के कड़ाहे में
जला रहे होते अब तक?
तेरी निष्ठुरता की सज़ा
तेरी सात पुश्तें भुगत रही अब तक,
अब ऐसे ही मत आ जाना
मुँह उठा कर,
पहले जा!
पुदीने के पहनाव से,
इमली के सहलाव से,
चटनी के तालाब में,
तनिक मुँह धो कर आना!
और हाँ!
आते वक्त,
धनिया मिर्ची भी ज़रा साथ लेते आना।
अरे! अकेले ही क्यों चल दिया?
तू अकेला,
भला भूख को शांत थोड़ी ही कर पाएगा?
सिर्फ़ एक से मन तृप्त न हो पाएगा,
अपने भाई बहन,
समस्त परिजन
को भी साथ में ले कर आना,
भई! मेरे यहाँ भी तो लोग हैं,
सभी हैं तेरे रूह के प्यासे,
तेरे रूप के भूखे,
तुझे पचाने के सपने
न जाने कितने देख रहे।
तेरे यादों का जलजला,
बचपन की मिठाई की दुकान
में हैं कहीं छिपा,
अतिथियों से कहता की
ज़्यादा से ज़्यादा दर्शन दो,
तो कृपा भी बरसती रहे
हमारे मेज़ पर।
ए मेहमान!
हम हैं बेज़ुबान,
बस इशारा समझ जाना,
सारे समोसे मत खा जाना,
इनके तिकोनों का
विभाजन कब का हो चुका है
बच्चों के मन में,
पूरे परिवार का हिस्सा भी
तो है बसा इसके अंदर में,
रिश्तेदारी में कहीं हँस-हँस के
ज़्यादा मत निपटा देना।
ए समोसे!
कब से कर रहा हूँ तेरा इंतज़ार
ज़रा मेरे पास जल्दी आ जाना!