चलो कह देतें हैं एक और झूठ,
आखिर दुनिया में सच है ही क्या?
आकाश का रंग,
है आँखों का छलावा |
अगर अंबर है नीला,
तो मेरा मन भी है नीला,
मेरी ज़ुबान भी है नीली,
मेरा पैसा भी नीला |
मेरे बाल,
चलो कुछ तो सफ़ेद
पर बाकी सब है नीले |
यह रात भी नीली,
अंधकार है नीला
इस नीले जाम का
है विष नशीला
जब बातें नुकीली,
अंजाम भी नीला |
मेरे हर नीले धंधे का
प्रतिफ़ल भी नीला |
झूठ है कड़वा,
अब तो ईमान भी नीला |
क्यों झाँकूँ अंदर?
रूह भी तो है कब से नीली?
बस एक परछाई है ऐसी नीली,
जो देखे मेरा रंग सच्चा |
रोज़ मेरा कद नापे,
कर दे मुझे और छोटा,
मेरे हर नीले पैग़ाम का
जवाब दे एक नीले सवाल से –
क्या तू तब भी था नीला
जब निकला था माँ की कोख से?