दिन की इच्छा रखने वाले,
अंधकार में रहना सीख,
काल जीव के शैली में
रात भी ज़रूरी है।
प्रकाश की चाहत भी तो
उठी थी अंधियारे से,
विष के प्रभाव से ही
अमृत पनपता है।
पाने की इच्छा है तो
कुछ खोना भी ज़रूरी है,
दुर्गंध की अवगुण से ही
पुष्प का दरजा बनता है।
कुछ कमी ना हो इस जीवन में
तो पूर्णता का अस्तित्व नहीं,
अधर्म की अवस्था से ही
धर्म व्यवस्था करता है।
अशुभ के प्रकोप से
मंगल का दिया जलता है,
सत्य का भी तो ढिंढोरा
झूट के कारण बजता है।
ज्योत की महिमा और खिले
दीपक तले अंधेरे से,
व्याकुलता की चरमता से
मन शांत स्वभाव में ढलता है।
चिंगारी की एक झलक
कृष्ण पक्ष में जँचता है,
तारों का दीप्त बगीचा भी
श्याम शैय्या में दिखता है।
कुछ अवधि का ही खेल तो है
कल फिर सूरज उग जाएगा,
रात के मलिन सफ़र में
तुझे चंदा राह दिखाएगा।
निशा का फिर क्यों भय करे
यह तो प्रभा का अभाव है बस,
किरणों की प्रतीक्षा कर
कल फिर सवेरा हो जाएगा।