बीमार

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ऐ बीमार
तू है किसका शिकार ?

शायद वो हवा
जो चली थी सर्राटे से,
बदल गई मिजाज तेरे,
सिकोड़ गई तुझे
अपने आवरण में,
ले गई तुझे अपने भीतर
खुद से अवगत कराने |

या वो पानी जो तू पी गया
बिन सोचे समझे,
तू कहता था
पानी का रंग तो
दिखता है प्यासे को,
मैंने तो बेरंग ही जाना था कब तक,
क़िल्लत हुई ना थी अब तक |

शायद समय का पहिया
दिलाने आया तुमको याद,
कि हर दिन के बाद
आती है रात |
तू याद करे पीड़ा में
स्वास्थ्य के नज़्मे
और दोहराये उसका पाठ हर साल |

या फिर तेरे जीवन की गाड़ी,
जंग खा कर जो गिर पड़ी है,
कह रही तुझे,
बदल दे ये भी आदत
इसमे थी इतनी ही क्षमता
अब तेरा ईंधन कुछ और है |

चार दीवारी
रूह की प्यासी
तेरे घुटन का कारण
बंद दरवाज़े हैं |
तेरे ख्यालों का हरा गलीचा
नोटों की गड्डी नहीं
बल्कि तृणभूमि का दृश्य है |

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