रातों की नींद गायब है,
अनहोनी की बिल्लाहट से,
कोई तो छिपा है झाड़ियों में
जो कर रहा इंतज़ार,
मेरी तरह,
मेरे सो जाने का।
अंधेरे की दस्तक है,
याद नहीं कि,
दरवाज़ा बंद किया था या नहीं,
फटी चादर ओढ़े,
निराश्रय निहारता
प्रकाश के ख़ाली झोले को,
सोच में डूबा
कौन है पहरी?
जो बचाएगा मुझे?
इस ख़ूँख़ार दानव से
जो हर धड़कन के साथ,
धीमे-धीमे आगे बढ़ रहा।
हर एक आहट,
साहस का भक्षक,
बिखरती उम्मीदों का रक्षक
अब भी बैठा है निठुर,
इन बेड़ियों की चाभी
गुम कर।
कैसे सम्भालूँ अपनी नाव?
बिन पतवार,
जब सामने हो प्रपात,
न मैं कोई तैराक,
और डूबना निश्चित हो।
हर रास्ता है बंद
अंत निकट है
हर जीवन के प्रारंभ से,
थक चुका हूँ मैं
इन पथों को नापते
साहस का गला
जब घुट चुका हो,
घातस्थान में
घिरे हुए शत्रुओं से
घायल शेर कब तक लड़े?
अब प्रतीत होती हैं
उस राक्षस की साँसें
अपने समक्ष,
सोच रहा हूँ
कि थोड़ी देर सो जाऊँ ।